Tuesday, 11 October 2011

सतपुरुष कबीर साहिब की भक्ति से ही जीव मुक्त हो सकता है.....

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया, और धर्मराय कहिये |

इन पाँचों मिल परपंच बनाया, वाणी हमारी लहिये |

इन पाँचों मिल जीव अटकाये, युगन-युगन हम आन छुटाये |

बंदीछोड़ हमारा नामं, अजर अमर है स्थिर ठामं ||



पीर पैगम्बर क़ुतुब औलिया, सुर नर मुनिजन ज्ञानी |

येता को तो राह ना पाया, जम के बंधे प्राणी |

धर्मराय की धूमा-धामी, जम पर जंग चलाऊँ |

जोरा को तो जान न दूंगा, बाँध अदल घर ल्याऊँ ||



काल अकाल दोहूँ को मोसूँ, महाकाल सिर मूँडू |

मैं तो तख़्त हजूरी हुकमी, चोर खोज कूं ढूँढू |

मूला माया मग में बैठी, हंसा चुन-चुन खाई |

ज्योति स्वरूपी भया निरंजन, मैं ही करता भाई ||



सहंस अठासी दीप मुनीश्वर, बंधे मूला डोरी |

ऐत्यां में जम का तलबाना, चलिए पुरुष कीशोरी |

मूला का तो माथा दागूं, सत् की मोहर करूँगा |

पुरुष दीप कूं हंस चलाऊँ, दरा ना रोकन दूंगा ||



हम तो बंदीछोड़ कहावां, धर्मराय है चकवै |

सतलोक की सकल सुनावां, वाणी हमरी अखवै |

नौ लाख पट्टन ऊपर खेलूं, साहदरे कूं रोकूं |

द्वादस कोटि कटक सब काटूं, हंस पठाऊँ मोखूं ||



चौदह भुवन गमन है मेरा, जल थल में सरबंगी |

खालिक खलक खलक में खालिक, अविगत अचल अभंगी |


अगर अलील चक्र है मेरा, जित से हम चल आये |

पाँचों पर प्रवाना मेरा, बंधी छुटावन धाये ||



जहाँ ओंकार निरंजन नाहीं, ब्रह्मा विष्णु वेद नहीं जाहीं |

जहाँ करता नहीं जान भगवाना, काया माया पिंड न प्राणा |

पांच तत्व तीनों गुण नाहीं, जोरा काल दीप नहीं जाहीं |

अमर करूँ सतलोक पठाऊँ, तातैं बंदीछोड़ कहाऊँ ||

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सतपुरुष कबीर साहिब की भक्ति से ही जीव मुक्त हो सकता है. जब तक जीव सतलोक में वापिस नहीं चला जाएगा तब तक काल लोक में इसी तरह कर्म करेगा और की हुई पुन्न कमाई स्वर्ग रुपी होटलों में और पाप कर्मो को नरक में भोगेगा फिर लख चौरासी में चक्कर काटता रहेगा. इन पांचों (ब्रह्मा-विष्णु-महेश, माया और धर्मराय) ने मिलकर जीव को यहाँ काल लोक में कर्म के बंधन में बाँध रखा है. इनसे ऊपर सतपुरुष है जो कुल का मालिक है और अविनाशी है. बाकी ये सब नाशवान प्रभु हैं, महाप्रलय में ये सब तथा इनके लोक समाप्त हो जायेंगे. आम जीव से कई हज़ार गुना इनकी उम्र है, पर जो समय रख दिया वो एक दिन पूरा जरूर होयेगा. यदि सतपुरुष परमात्मा के नुमांयदे पूर्ण संत (सतगुरु) की शरण लेकर नाम की कमाई करें तो हम सतलोक (सचखंड) के अधिकारी हंस हो सकते हैं. कबीर साहिब (पूर्ण ब्रह्म) अपनी जानकारी स्वयं बताते हैं कि इन प्रभुओं से ऊपर असंख भुजा का परमात्मा सतपुरुष (कविर्देव) है जो सतलोक (सचखंड) में रहता है तथा उसके अंतर्गत सर्वलोक आते हैं और वहां पर सतनाम-सारनाम के जाप द्वारा जाया जा सकता है जो पूरे गुरु से प्राप्त होता है. सतलोक में जो आत्मा चली जाती है उसका पुनर्जन्म नहीं होता.

2 comments:

  1. who is your adyatmik guru? आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्रा जैसे – कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरआन, पवित्रा बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रो के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई अध्यापक सलेबस (पाठयक्रम) से बाहर की शिक्षा देता है तो वह उन विद्यार्थियों का दुश्मन है। गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15, यजुर्वेद अध्याय न. 40 श्लोक न. 10, गीता अध्याय नं. 4 का श्लोक नं. 34

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  2. Naresh Ji aap jan buj kar ye swal kar rahe hain. Mere Guru Sant Rampal Ji hain aur aap ke guru ji koan hain mujhhe bhi batayen. Sat Saheb

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