ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 20
मर्यः न शुभ्रस्तन्वम् मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्
वृषेव यूथा परिकोशम् अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः इरा विवेश
अनुवाद - पूर्ण परमात्मा कविर्देव जो चैथे धाम अर्थात् अनामी लोक में तथा तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है वही परमात्मा का (न मर्यः) मनुष्य जैसा पाँच तत्व का शरीर नहीं है परन्तु है, मनुष्य जैसा समरूप (मृजनः) निर्मल मुखमण्डल युक्त आकार में विशाल श्वेत शरीर धारण करता हुआ ऊपर के लोकों में विद्यमान है (न अत्यः शुभ्रस्तन्वम्) वह पूर्ण प्रभु न अधिक तेजोमय शरीर सहित अर्थात् हल्के तेज पुंज के शरीर सहित वहाँ से (सृत्वा) गति करके अर्थात् चलकर (न) वही समरूप परमात्मा हमारे लिए अविलम्ब (इरा) पृथ्वी पर (विवेश) अन्य वेशभूषा अर्थात् भिन्न रूप (चम्वोः) धारण करके आता है। सतलोक तथा पृथ्वी लोक पर लीला करता है (यूथा) जो बहुत बड़े समुह को वास्तविक(सनये) सनातन पूजा की (वृषेव) वर्षा करके (धनानाम्) उन रामनाम की कमाई से हुए धनियों को (कनिक्रदत्) मंद स्वर से अर्थात् स्वांस-उस्वांस से मन ही मन में उचारण करके पूजा करवाता है, जिससे असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ (परि कोशम्) पूर्व वाले सुख सागर रूप अमृत खजाने अर्थात् सत्यलोक को (अर्षन्) पूजा करके प्राप्त करता है।
भावार्थ - साकार पूर्ण परमेश्वर ऊपर के लोकों से चलकर हल्के तेज पुंज का श्वेत शरीर धारण करके यहाँ पृथ्वी लोक पर भी अतिथी रूप में अर्थात् कुछ समय के लिए आता है तथा अपनी वास्तविक पूजा विधि का ज्ञान करा के बहुत सारे भक्त समूह को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है, असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ सत्य भक्ति की कमाई से पूर्व वाले सुखमय लोक पूर्ण मुक्ति के खजाने को अर्थात् सत्यलोक को साधना करके प्राप्त करता है।
‘‘शिशु रूप में प्रकट पूर्ण प्रभु कुँवारी गायों का दूध पीता है‘‘
जिस समय सन् 1398 में पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) कविर्देव काशी में आए थे उस समय उनका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ था, क्योंकि वे सर्व के सृजनहार हैं।
बन्दी छोड़ कबीर प्रभु काशी शहर में लहर तारा नामक सरोवर में कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके विराजमान हुए थे। जिसे नीरु नामक जुलाहा घर ले गया था, लीला करता हुआ बड़ा होकर कबीर प्रभु अपनी महिमा आप ही अपनी अमृतवाणी कविर्वाणी(कबीर वाणी) द्वारा उच्चारण करके सत्यज्ञान वर्णन किया जो आज सर्व शास्त्रों से मेल खा रही हैं।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
अनुवाद - (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हो अर्थात् कुँवारी (धेनवः) गायांे द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश करके की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कंुवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
मर्यः न शुभ्रस्तन्वम् मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्
वृषेव यूथा परिकोशम् अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः इरा विवेश
अनुवाद - पूर्ण परमात्मा कविर्देव जो चैथे धाम अर्थात् अनामी लोक में तथा तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक में रहता है वही परमात्मा का (न मर्यः) मनुष्य जैसा पाँच तत्व का शरीर नहीं है परन्तु है, मनुष्य जैसा समरूप (मृजनः) निर्मल मुखमण्डल युक्त आकार में विशाल श्वेत शरीर धारण करता हुआ ऊपर के लोकों में विद्यमान है (न अत्यः शुभ्रस्तन्वम्) वह पूर्ण प्रभु न अधिक तेजोमय शरीर सहित अर्थात् हल्के तेज पुंज के शरीर सहित वहाँ से (सृत्वा) गति करके अर्थात् चलकर (न) वही समरूप परमात्मा हमारे लिए अविलम्ब (इरा) पृथ्वी पर (विवेश) अन्य वेशभूषा अर्थात् भिन्न रूप (चम्वोः) धारण करके आता है। सतलोक तथा पृथ्वी लोक पर लीला करता है (यूथा) जो बहुत बड़े समुह को वास्तविक(सनये) सनातन पूजा की (वृषेव) वर्षा करके (धनानाम्) उन रामनाम की कमाई से हुए धनियों को (कनिक्रदत्) मंद स्वर से अर्थात् स्वांस-उस्वांस से मन ही मन में उचारण करके पूजा करवाता है, जिससे असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ (परि कोशम्) पूर्व वाले सुख सागर रूप अमृत खजाने अर्थात् सत्यलोक को (अर्षन्) पूजा करके प्राप्त करता है।
भावार्थ - साकार पूर्ण परमेश्वर ऊपर के लोकों से चलकर हल्के तेज पुंज का श्वेत शरीर धारण करके यहाँ पृथ्वी लोक पर भी अतिथी रूप में अर्थात् कुछ समय के लिए आता है तथा अपनी वास्तविक पूजा विधि का ज्ञान करा के बहुत सारे भक्त समूह को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है, असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ सत्य भक्ति की कमाई से पूर्व वाले सुखमय लोक पूर्ण मुक्ति के खजाने को अर्थात् सत्यलोक को साधना करके प्राप्त करता है।
‘‘शिशु रूप में प्रकट पूर्ण प्रभु कुँवारी गायों का दूध पीता है‘‘
जिस समय सन् 1398 में पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) कविर्देव काशी में आए थे उस समय उनका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ था, क्योंकि वे सर्व के सृजनहार हैं।
बन्दी छोड़ कबीर प्रभु काशी शहर में लहर तारा नामक सरोवर में कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके विराजमान हुए थे। जिसे नीरु नामक जुलाहा घर ले गया था, लीला करता हुआ बड़ा होकर कबीर प्रभु अपनी महिमा आप ही अपनी अमृतवाणी कविर्वाणी(कबीर वाणी) द्वारा उच्चारण करके सत्यज्ञान वर्णन किया जो आज सर्व शास्त्रों से मेल खा रही हैं।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
अनुवाद - (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हो अर्थात् कुँवारी (धेनवः) गायांे द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश करके की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कंुवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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